Friday, July 18, 2008

ज़रा नजरों से कहदो जी ..फ़िल्म : बीस साल बाद

ज़रा नजरों से कह दो जी, निशाना चूक ना जाए

मजा जब हैं तुम्हारी हर अदा, कातिल ही कहलाये

कातिल तुम्हे पकारु, के जाना-ये-वफ़ा कहू

हैरत में पड़ गया हूँ के मैं तुम को क्या कहू

ज़माना हैं तुम्हारा, चाहे जिसकी जिंदगी ले लो

अगर मेरा कहा मानो, तो एसे खेल ना खेलो

तुम्हारे इस शरारत से, ना जाने किस की मौत आए

कितनी मासूम लग रही हो तुम

तुम को जालिम कहे वो जूठा है

ये भोलापन तुम्हारा, ये शरारात और ये शोखीन

जरुरत क्या तुम्हे तलवार की, तीरों की, खंजर की

नजर भर के जिसे तुम देख लो, वो ख़ुद ही मर जाए

हम पे क्यो इस कदर बिगड़ती हो

छेदानेवाले तुम को और भी है

बहारों पर गुस्सा, उलज़ती हैं जो आखों से

हवाओंपर करो गुस्सा, जो टकराती हैं जुअल्फों से

कही एसा ना हो कोई तुम्हारा दिल भी ले जाए

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