अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंज़िलें है कौन सी
न वो समझ सके न हम
अजीब दास्तां...
(ये रोशनी के साथ क्यों
धुआँ उठा चिराग से) -२
ये ख़्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख़्वाब से
अजीब दास्तां...
(किसीका प्यार लेके तुम
नया जहाँ बसाओगे) -२
ये शाम जब भी आएगी
तुम हमको याद आओगे
अजीब दास्तां...
(मुबारकें तुम्हें के तुम
किसीके नूर हो गए) -२
किसीके इतने पास हो
के सबसे दूर हो गए
अजीब दास्तां...
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