Sunday, March 30, 2008

चाँद फ़िर निकला मगर तुम न आये

चाँद फ़िर निकला, मगर तुम ना आए
जला फ़िर मेरा दिल करू क्या मैं हाय

ये रात कहती है, वो दिन गए तेरे
ये जानता हैं दिल के तुम नहीं मेरे
खादी हू मैं फ़िर भी निगाहें बिछाए
मई क्या करू हाय, के तुम याद आए

सुलगते सीने से, धुवा सा उठता हैं
लो अब चले आओ के दम घुटता हैं
जला गए दिल को बहारों के साए
मैं क्या करू हाय, के तुम याद आए



पेयिम्ग गेस्ट ... 1957

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