Thursday, April 17, 2008

दिल अपना और

दिल अपना और परीत पराई
किस ने हैं ये, रीत बनाई
आंधी में एक दीप जलाया
और पानी में, आग लगाई

है दर्द एसा के सहना हैं मुश्किल
दुनियावालों से कहना हैं मुश्किल
घिर के आया हैं तूफ़ान एसा
बच के साहिल पे रहना हैं मुश्किल

दिल को संभाला ना दामन बचाया
फ़ैली जब आग टैब होश आया
गम के मारे पुकारे किसे हम
हम से बिछादा हमारा ही साया

1 comment:

उन्मुक्त said...

अच्छी कविता है। हिन्दी में और भी लिखिये।