जागो सोने वालों सुनो मेरी कहानी -२
क्या अमीरी क्या ग़रीबी भूलो बातें पुरानी
जागो सोने वालों ...
टूटा जो आज दिल का वो साज़ रोने लगा एक बदनसीब
हँसने लगे दुनिया के लोग कोई हुआ बर्बाद
जागो सोने वालों ...
ये ऊँच नीच दुनिया के बीच आख़िर ये क्यों बोलो कोई
जो है भला वो क्यों बुरा हम तो न समझे ये राज़
जागो सोने वालों ...
आपस में ग़म बाँटें जो हम फिर न रहें ऐसे सितम
कहने को इंसान हैं वो इन्सानियत कहाँ है
जागो सोने वालों ...
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