र : कभी रात-दिन हम दूर थे दिन-रात का अब साथ है
ल : वो भी इत्तेफ़ाक़ की बात थी ये भी इत्तेफ़ाक़ की बात है
र : कभी रात-दिन ...
र : तेरी आँखों में है ख़ुमार सा तेरी चाल में है सुरूर सा
ये बहार कुछ है पिए हुए ये समा नशे में है चूर सा -२
कभी इन फ़िज़ाओं में प्यास थी अब मौसम-ए-बरसात है
ल : वो भी इत्तेफ़ाक़ ...
र : कभी रात-दिन ...
ल : मुझे तुमने कैसे बदल दिया हैरान हूँ मैं इस बात पर -२
मेरा दिल धड़कता है आजकल तेरी शोख़ नज़रों से पूछ कर -२
मेरी जाँ कभी मेरे बस में थी अब ज़िन्दगी तेरे हाथ है
र : वो भी इत्तेफ़ाक़ ...
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