कि : दूरियाँ नज़दीकियाँ बन गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है -२
आ : कह डालीं कितनी बातें अनकही अजब इत्तिफ़ाक़ है -२
कि : दूरियाँ नज़दीकियाँ ...
( ऐसी मिलीं दो निगाहें मिलती हैं जैसे दो राहें
जागी ये उल्फ़त पुरानी गाने लगी हैं फ़िज़ाएँ
आह आह ) -२
प्यार की शहनाइयाँ बज गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है
दूरियाँ नज़दीकियाँ ...
आ : ( एक डगर पे मिले हैं हम-तुम तुम-हम दो साए
ऐसा लगा तुमसे मिलकर दिन बचपन के आए
आह आह ) -२
वादियाँ उम्मीद की सज गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है
कि : दूरियाँ नज़दीकियाँ ...
( पहले कभी अजनबी थे अब तो मेरी ज़िन्दगी हो
सपनों में देखा था जिसको साथी पुराने तुम ही हो
हो हो हो ) -२
बस्तियाँ अरमान की बस गईं अजब इत्तिफ़ाक़ है
कि : दूरियाँ नज़दीकियाँ ...
दो : दूरियाँ नज़दीकियाँ ...
No comments:
Post a Comment