Sunday, November 29, 2009

और कुछ देर ठहर ...फ़िल्म :आखरी ख़त

और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा

और कुछ देर ठहर ...


रात बाक़ी है अभी रात में रस बाक़ी है

पाके तुझको तुझे पाने की हवस बाक़ी है

और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा

और कुछ देर ठहर ...


जिस्म का रंग फ़ज़ा में जो बिखर जायेगा

महरबान हुस्न तेरा और निखर जायेगा

लाख ज़ालिम है ज़माना मगर इतना भी नहीं

तू जो बाहों में रहे वक़्त ठहर जायेगा

और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा

और कुछ देर ठहर ...


ज़िंदगी अब इन्हीं क़दमों पे लुटा दूँ तो सही

ऐ हसीन बुत मैं ख़ुदा तुझको बना दूँ तो सही

और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा

और कुछ देर ठहर ...

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