Monday, November 10, 2008

रुत है मिलन की साथी मेरे आरे ..फ़िल्म : मेला

ल : रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे
रुत है मिलन की ...

र : हो कोई सजनवा आजा
तेरे बिना ठंडी हवा सही ना जाए आजा
रुत है मिलन की ...

ल : जैसे रुत पे हरियाली गहरी छाए मुख पे
रंगत निखार की
र : खेतों के संग झूमें पवन में फुलवा सपनों के
डाली अरमाँ की
ल : तेरे सिवा अब तो कुछ सूझे नहीं साँवरे
रुत है मिलन की ...

र : ओ सजनिया जान ले ले कोई मोसे
अब तो लागे नैना तोसे
आजा ओ आजा
मन कहता है दुनिया तज के बस जाऊँ
तेरी आँखों में
ल : और मैं गोरी महकी-महकी घुल के रह जाऊँ
तेरी साँसों में
र : एक दूजे में यूँ खो जाएँ जग देखा करे
रुत है मिलन की ...

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