Friday, November 7, 2008

रात भर का मेहमान अँधेरा ..फ़िल्म : सोने की चिडिया

मौत कभी भी मिल सकती है लेकिन जीवन कल न मिलेगा
मरने वाले सोच समझ ले फिर तुझको ये पल न मिलेगा

( रात भर का है मेहमां अँधेरा
किसके रोके रुका है सवेरा ) -२

रात जितनी भी संगीन होगी
सुबह उतनी ही रंगीन होगी
ग़म न कर गर है बादल घनेरा
किसके रोके रुका है ...

लब पे शिकवा न ला अश्क़ पी ले
जिस तरह भी हो कुछ देर जी ले
अब उखड़ने को है ग़म का डेरा
किसके रोके रुका है ...

यूँ ही दुनिया में आ कर न जाना
सिर्फ़ आँसू बहाकर न जाना
मुसुराहट पे भी हक़ है तेरा
किसके रोके रुका है ...

( आ कोई मिल के तदबीर सोचें
सुख के सपनों की ताबीर सोचें ) -२
जो तेरा है वही ग़म है मेरा
किसके रोके रुका है ...

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