Sunday, September 14, 2008

चाँद सा मुखडा क्यूँ शर्माए ..फ़िल्म :इंसान जाग उठा

नटखट तारो हमें न निहारो
हमरी ये प्रीत नई

चाँद सा मुखड़ा क्यों शर्माया
आँख मिली और दिल घबराया
चाँद सा...

झुक गए चंचल नैना इक झलकी दिखलाके
बोलो गोरी क्या रखा है पलकों में छुपाके
तुझको रे साँवरिया तुझसे ही चुराके
नैनों में सजाया मैंने गजरा बनाके
नींद चुराए तुने चैन भी चुराया..
चाँद सा...

ये भीगे नज़ारे करते हैं इशारे
मिलने की ये रुत है गोरी दिन हैं हमारे
सुन लो पिया प्यारे क्या कहते हैं तारे
हमने तो भिचड्ता देखा कितनों के प्यारे
कभी न अलग हुई साया से काया
चाँद सा...



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