Wednesday, September 3, 2008

मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना ..फ़िल्म: संगम

मेरे मन की गंगा, और तेरे मन की जमुना का

बोल राधा बोल संगम होगा के नही

कितनी सदियाँ बीत गयी है, हाय तुजे समाजाने में

मेरे जैसा धीराजवाला हैं कोई और जमाने में

दिल का बढ़ता बोज़ कभी कम होगा के नही



दो नदियों का मेल अगर इतना पावन कहलाता है

क्यो ना जहा दो दिल मिलते है, स्वर्ग वहा बस जाता है

हर मौसम हैं प्यार का मौसम होगा के नही

तेरी खातिर मैं तदपा यूं तरसे धरती सावन को

राधा राधा एक रतन है, साँस की आवन जावन को

पत्थर पिघले दिल तेरा नम होगा के नही



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