रहे ना रहे हम महका करेंगे
बन के कली, बन के सबा, बागा-ये-वफां में
मौसम कोइ हो इस चमन में रंग बन के रहेंगे हम खिरामा
चाहत की खुशबू यूं ही जुल्फों से उडेगी,
खिजा हो या बहारें
यूं ही जूमाते और खिलते रहेंगे, बन के कली..
खोये हम एसे, क्या हैं मिलना, क्या बिछादाना नहीं हैं याद हम को
कूंचे में दिल के जब से आये सिर्फ दिल की
जमीन हैं याद हम को
इसी सरजमीं पे हम तो रहेंगे, बन के कली..
जब हम ना होंगे, जब हमारी खानक पे तुम रुकोगे चलते चलते
अश्कों से भीगी चांदनी में एक सदा सी सुनो गे चलते चलते
वही पे कही हम तुम से मिलेंगे, बन के कली..
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