Thursday, November 6, 2008

रुख से ज़रा नकाब उठादों मेरे हुजुर ;;फ़िल्म : मेरे हुज़ूर

अपने रुख पर निगाह कराने दो, खूबसूरत गुनाह कराने दो

रुख से परदा हटाओ, जाना-ये-हया, आज दिल को तबाह कराने दो

रुख से ज़रा नकाब उठा दो, मेरे हुजूर

जलवा फ़िर एक बार दिखा दो, मेरे हुजूर

वो मारामारी से हाथ वो महका हुआ बदन

टकराया मेरे दिल से, मोहब्बत का एक चमन

मेरे भी दिल का फुल खिला दो, मेरे हुजूर

हुस्न-ओ-जमाल आप का शीशे में देखकर

मदहोश हो चुका हूँ मैं, जलवों की राहपर

गर हो सके तो होश में ला दो, मेरे हुजूर

तुम हमसफ़र मिले हो मुजे इस हयात में

मिल जाए जैसी चाँद कोई सूनी रात में

जाओगे तुम कहा ये बता दो, मेरे हुजूर



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