रहते थे कभी जिन के दिल में
हम जान से भी प्यारों की तरह
बैठे हैं उन्ही के कूचें में हम
आज गुनाहगारोंकी तरह
दावा था जिन्हें हमदर्दी का
ख़ुद आ के ना पूछा हाल कभी
महफील में बुलाया हैं हम पे
हँसाने को सितामागारोंकी तरह
बरसों के सुलगते तनमन पर
अश्कों के दो छींटे दे ना सके
तपते हुए दिल के जख्मों पर
बरसे भी तो अंगारों की तरह
सौ रूप भरे जीने के लिए
बैठे हैं हजारो जहर पिए
ठोकर ना लगाना हम ख़ुद है
गिरती हुई दीवारों की तरह
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