शामल शामल बरन कोमल कोमल चरण
तेरे मुखडे पे चन्दा, गगन का जादा
बड़े मन से विधाता ने तुज को घडा
तेरे बालों में सिमटी सावन की घटा
तेरे गालों पे छिटकी, पूनम की छाता
तीखे तीखे नयन मीठे मीठे बयां
तेरे अंगों पे चंपा का रंग चढ़ा
बड़े मन से विधाता ने तुज को घडा
ये उमर, ये कमर, सौ सौ बल खा रही
तेरी तिरछी नजर तीर बरसा रही
नाजुक नाजुक बदन धीमी धीमी चलन
तेरे बाँकी लटक में हैं जादू बड़ा
बड़े मन से विधाता ने तुज को घडा
किस पारस से सोना ये टकरा गया
तुजे रचकर चितेरा भी चकरा गया
ना इधर जा सका, ना उधर जा सका
रह गया देखता वो खडा ही खडा
बड़े मन से विधाता ने तुज को घडा
No comments:
Post a Comment