आ~
लग जा गले दिलरुबा
कहाँ रूठ के चली
ओ गुलाब की कली
तेरे कदमों में दिल है मेरा
लग जा गले दिलरुबा ...
ऐ शोला बदन ऐ ज़ोहरा जबीं
तुम गुस्से में लगती हो और हसीं
बैठा हूँ जिगर को थामे हुए
मुझ पे न गिरे ये बिजली कहीं
क्या कहने नज़ाकत के
सामाँ है क़यामत के
मैं तो पहली नज़र में गया
लग जा गले दिलरुबा ...
इतरा के न चल, बलखा के न चल
आँचल को हवा में उड़ा के न चल
बन जायेगा कोई अफ़साना
दिल को मेरे तड़पा के न चल
इतना न सितम करना
कुछ नज़र-ए-क़रम करना
देखिये दिल है नाज़ुक मेरा
लग जा गले दिलरुबा ...
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