वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते
हम भी ग़ैरों की तरह आप को पयारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...
अपनी तक़दीर में पहले ही कूछ तो ग़म हैं
और कुछ आप की फ़ितरत में वफ़ा भी कम है
वरन जीती हुई
वरन जीती हुई बाज़ी तो ना हारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...
हम भी प्यासे हैं ये साक़ी को बता भी न सके
सामने जाम था और जाम उठा भी न सके
काश ग़ैरत-ए- महफ़िल के न मारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...
दम घुटा जाता है सीने में फिर भी ज़िंदा हैं
तुम से क्या हम तो ज़िंदगी से भी शर्मिन्दा हैं
मर ही जाते जो न यादों के सहारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...
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