लो चेहरा सुर्ख़ शराब हुआ आँखों ने साग़र छलकाया -२
ये गुस्सा हाय ये गुस्सा तेरा सुभान-अल्लाह
इक हुस्न का दरिया चढ़ आया
लो चेहरा सुर्ख़ शराब ...
ये गर्म निग़ाह तौबा-तौबा पत्थर में भी आग भड़क उठे
( उस दिल का ख़ुदा ही हाफ़िज़ है ) -२ जो तेरी नज़र से टकराया
ये गुस्सा ...
देखो तो ज़रा तुम मौसम को मौसम भी लरज़ता है डर से
वो ख़ौफ़ से बिजली काँप उठी बादल का जोश उतर आया
ये गुस्सा ...
क्यों आग बबूला होते हो अब छोड़ो ऐसे गुस्से को
होंठों की लाली कहती है इक शोला लब तक बढ़ आया
ये गुस्सा ...
No comments:
Post a Comment