काश्मिर की कली हूँ मैं, मुझ से ना रुठो बाबूजी
मुरझा गई तो फिर ना खिलूँगी,
कभी नही, कभी नही, कभी नही
रंगत मेरी बहारों में, दिल की आग चनारों में
कुछ तो हम से बात करो इन बहके गुलजारों में
प्यार पे गुस्सा करते हो, तेरा गुस्सा हम को प्यारा हैं
यही अदा तो कातिल हैं, जिसने हम को मारा हैं
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