माना जनाब ने पुकारा नही,
क्या मेरा साथ भी गवांरा नही
मुफ्त में बन के, चल दिए तन के, वल्लाह जवाब तुम्हारा नही
यारों का चलन हैं गुलामी,
देते हैं हसीनों को सलामी
गुस्सा ना कीजिये, जाने भी दीजिये
बंदगी तो, बंदगी तो, लीजिये साहब
टूटा फूटा, दिल ये हमारा,
जैसा भी हैं अब हैं तुम्हारा
इधर देखिये, नजर फेकिये
दिल्लगी ना दिल्लगी ना कीजिये साहब
माशाल्ला, कहना तो माना,
बन गया बिगडा ज़माना
तुमको हँसा दिया, प्यार सिखा दिया
शुक्रिया तो शुक्रिया तो कीजिये साहब
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