लो आ गयी उनकी याद, वो नहीं आए
दिल उनको ढूँढता है, गम का सिंगार कर के
आँखे भी रुक गयी है, अब इंतजार कर के
एक आस रह गयी है, वो भी ना टूट जाए
रोटी हैं आज हम पर, तनहईयाँ हमारी
वो भी ना पाये शायद, परछाइयाँ हमारी
बढ़ते ही जा रहे है, मायूसीयों के साए
लौ थरथरा रही है, अब शमा-ये-जिंदगी की
उजड़ी हुयी मोहब्बत मेहमान हैं दो घड़ी के
मर कर ही अब मिलेंगे, जी कर तो मिल ना पाये
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