मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुए में उडाता चला गया
बरबादीयों का सोग मनाना फिजूल था
बरबादीयों का जश्न मनाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समाज लिया
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
गम और खुशी में फर्क ना महसूस हो जहा
मैं दिल को उस मकाम पे लाता चला गया
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