मुसाफिर हूँ यारों, ना घर हैं ना ठिकाना
मुजे चलते जाना हैं, बस चलते जाना
एक राह रुक गयी, तो और जुड़ गयी
मैं मुदा तो साथ साथ राह मुद गयी
हवा के परों पर मेरा आशियाना
दिन ने हाथ थाम कर इधर बिठा लिया
रात ने इशारे से उधर बुला लिया
सुबह से, शाम से मेरा दोसताना
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