मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोटी
मेरे देश की धरती
बैलों के गले में जब घुंगरू, जीवन का राग सुनाते है
गम कोस दूर हो जाता है, खुशियों के कँवल मुसकाते है
सुन के रहत की आवाजे, यूं लगे कही शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
जब चलते हैं इस धरती पे हल , ममता अन्गादईयाँ लेती है
क्यो ना पूजे इस मानती को, जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिस ने जनम लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा
यहाँ अपना पराया कोई नही, हैं सब पे, मान, उपकार तेरा
ये बाग़ हैं गौतम नानक का, खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष टैगोर, तिलक एसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरीसिंग नालावे से, रंग लाल हैं लाल बहादूर से
रंग बना बसन्ती भगतसिंग रंग अमन का वीर जवाहर से
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