नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ढूँढूँ रे सांवरिया
पीया-पीया रटते-रटते हो गई रे बाँवरिया
नगरी-नगरी ...
बालम बेदर्दी ने मोहे फूँका ग़म की आग में
बिरहा की चिंगारी भर दो दुखिया के सुहाग में
पल-पल मनवा रोए छलके नैनों की गगरिया
नगरी-नगरी ...
आई थी अँखियों में लेकर सपने क्या-क्या प्यार के
जाती हूँ दो आँसू लेकर आशाएं सब हार के
दुनिया के मेले में लुट गई जीवन की गठरिया
नगरी-नगरी ...
दर्शन के दो प्यासे नैना जीवन भर न सोएंगे
बिछड़े साजन तुमरे कारण रातों को हम रोएंगे
अब न जाने रामा कैसे बीतेगी उमरिया
नगरी-नगरी ...
No comments:
Post a Comment