गैरों पे करम अपनों पे सितम,
एह जान-ऐ-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
रहने दे अभी थोड़ा सा भरम,
एह जान-ऐ-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
ये ज़ुल्म न कर
घिरो पे करम ...
हम भी थे तेरे मंज़ूर-ऐ-नज़र,
दिल चाहा टू अब इकरार न कर
सौ तीर चला सीने पे मगर, बेगानो से मिलकर वार न कर (२)
बे-मौत कही मर जाए न हम
एह जान-ऐ-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
ये ज़ुल्म न कर
घिरो पे करम ...
हम चाहने वाले हैं तेरे, यू हमको जलाना ठीक नही
महफिल में तमाशा बन जाए,
इस दर्जा सताना ठीक नही (२)
मर जायेंगे हम, मित जायेंगे हम
एह जान-ऐ-वफ़ा ये ज़ुल्म न कर
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