Tuesday, June 10, 2008

गम की अँधेरी रात मी

ग़म की अंधेरी रात में
दिल को ना बेक़रार कर
सुबह ज़रूर आयेगी
सुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अंधेरी रात में


दर्द है सारी ज़िन्दगी
जिसका कोई सिला नहीं
दिल को फ़रेब दीजिये
और ये हौसला नहीं - २


खुद से तो बदग़ुमाँ ना हो
खुद पे तो ऐतबार कर
सुबह ज़रूर आयेगी
सुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अन्धेरी रात में


खुद ही तड़प के रह गये
दिल कि सदा से क्या मिला
आग से खेलते रहे
हम को वफ़ा से क्या मिला - २


रफ़ी: दिल की लगी बुझा ना दे
दिल की लगी से प्यार कर
सुबह ज़रूर आयेगी
सुबह का इन्तज़ार कर

ग़म की अंधेरी रात में ...


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