हाय तबस्सुम तेरा -२
धूप खिल गई रात में
या बिजली गिरी बरसात में
हाय तबस्सुम तेरा ...
देखी तेरी अंगड़ाई
शम्मा की लौ थरथराई
उफ़ ये हँसी मासूम सी जन्नत का जैसे सवेरा
हाय तबस्सुम तेरा ...
पलकों की चिलमन उठाना
धीरे से ये मुस्कराना
लब जो हिले ज़ुल्फ़ों तले छाया गुलाबी अँधेरा
हाय तबस्सुम तेरा ...
रोको न अपनी हँसी को
जीने दो वल्लाह किसी को
तेरी हँसी जो रुक गई रुक जाएगा साँस मेरा
No comments:
Post a Comment